वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

सय्यदना मुहम्मद रसूल अल्लाह

 

सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम सन एक आम अलफ़ील (570-ए-) में रबी उलअव्वल के मुबारक महीने में बिअसत से चालीस साल पहले मक्का में पैदा हुए। सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  की तारीख़ पैदाइश के बारे में मुख़्तलिफ़ रवायात हैं। अहले सन्नत के नज़दीक ज़्यादा रवायात 12 रबी उल अव्वल की हैं अगरचे कुछ उल्मा 9 रबी उल अव्वल को दरुस्त मानते हैं। इन की पैदाइश पर मोजज़ात नमूदार हुए जिन का ज़िक्र क़दीम आसमानी किताबों में था। मसलन आतिश कदा फ़ारस जो हज़ार साल से भी पहले रोशन था बुझ गया। मिशकात (मिश्कात शरीफ़) की एक हदीस है जिस के मुताबिक़ हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम का इरशाद है कि " में इस वक़्त भी नबी था जब आदम मिट्टी और पानी के दरमयान थे। मैं इबराहीम अलैहि अस्सलाम की दुआ अलैहि अस्सलाम, ईसा अलैहि अस्सलाम की बशारत और अपनी वालिदा का वो ख़ाब हूँ जो उन्हों ने मेरी पैदाइश के वक़्त देखा और उन से एक ऐसा नूर ज़ाहिर हुआ जिस से शाम के महलात रोशन हो गए।"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लमके वालिद मुहतरम हज़रत अबदुल्लाह इबननं अबदुल मुतलिब आप की विलादत से छः माह क़बल वफ़ात पा चुके थे और आप की परवरिश आप के दादा हज़रत अबदुल मुतलिब ने की। इस दौरान आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने कुछ मुद्दत एक बदवी क़बीला के साथ बसर की जैसा अरब का रिवाज था। इस का मक़सद बच्चों को फ़सीह अरबी ज़बान सिखाना और खुली आब-ओ-हवा में सेहत मंद तरीक़े से परवरिश करना था। इस दौरान आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को हज़रत हलीमा बिंत अबदुल्लाह और हज़रत सुवैबा (दरुस्त तलफ़्फ़ुज़: सववयबा) ने दूध पिलाया। छः साल की उम्र में आप की वालिदा और आठ साल की उम्र में आप के दादा भी वफ़ात पा गए। इस के बाद आप की परवरिश की ज़िम्मेदारीयां आप के चचा और बनू हाशिम के सरदार हज़रत अबू तालिब ने सरअंजाम दें।

तक़रीबन 25 साल की उम्र में आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने शाम का दूसरा बड़ा सफ़र किया जो हज़रत ख़दीजहओ के तिजारती क़ाफ़िला के लिए था । इस सफ़र से वापसी पर हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह ताला अनहु के ग़ुलाम मयस्सरा ने इन को हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की ईमानदारी और अख़लाक़ की कुछ बातें बताएं। आप हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के अच्छे अख़लाक़ और ईमानदारी से बहुत मुतास्सिर हुईं और आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को शादी का पैग़ाम दिया जिस को आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने हज़रत अबू तालिब के मश्वरे से क़बूल कर लिया।

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ग़ौरो फ़िक्र केलिए मक्का से बाहर एक ग़ार हिरा में तशरीफ़ ले जाते थे हज़रत जिब्राईल अलैहि अस्सलाम पहली वही लेकर तशरीफ़ लाए। इस वक़्त सूरत अलालक़ की आयात नाज़िल हुईं। इस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  की उम्र तक़रीबन चालीस साल थी। शुरू ही में हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह ताला अनहु, आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम   के चचाज़ाद हज़रत अली करमु अल्लाह वजहु आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के क़रीबी दोस्त हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह ताला अनहु, और आपऐ के आज़ाद करदा ग़ुलाम और सहाबी हज़रत जै़द बिन साबित रज़ी अल्लाह ताला अनहु आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम पर ईमान ले आए। मक्का के बाहर से पहले शख़्स हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी रज़ी अल्लाह ताला अनहु थे जो ईमान लाए।

619 ए- में आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की बीवी हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह ताला अनहु और आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के प्यारे चचा हज़रत अबू तालिब इंतिक़ाल फ़र्मा गए। इसी लिए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने इस साल को आम उल-हज़न यानी दुख का साल क़रार दिया।

620  ए- में आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  मेराज पर तशरीफ़ ले गए। इस सफ़र के दौरान आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम मक्का से मस्जिद उकसा गए और वहां तमाम अनबयाए कराम की नमाज़ की इमामत फ़रमाई। फिर आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  आसमानों में अल्लाह ताली से मुलाक़ात करने तशरीफ़ ले गए। वहां अल्लाह ताली ने आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को जन्नत और दोज़ख़ दिखाया। वहां आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की मुलाक़ात मुख़्तलिफ़ अनबयाए करामऑ से भी हुई। इसी सफ़र में नमाज़ भी फ़र्ज़ हुई।

622 ए- तक मुस्लमानों केलिए मक्का में रहना मुम्किन नहीं रहा था। कई दफ़ा मुस्लमानों और ख़ुद हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को तकालीफ़ दें गईं। इस वजह से आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने मुस्लमानों को मदीना हिज्रत करने की इजाज़त दे दी। आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म से हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह ताला अनहु के साथ सितंबर 622-ए-में मदीना की तरफ़ रवाना हुए और मदीना में अपनी जगह हज़रत अली रज़ी अल्लाह ताला अनहु को अमानतों की वापसी के लिए छोड़ा। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के मदीना पहुंचने पर इन का अंसार ने शानदार इस्तिक़बाल किया और अपने तमाम वसाइल पेश कर दिए।

आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की ऊंटनी हज़रत अब्बू अय्यूब अंसारी रज़ी अल्लाह ताला अनहु के घर के सामने रुकी और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन के घर क़ियाम फ़रमाया। जिस जगह ऊंटनी रुकी थी उसे हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने क़ीमतन ख़रीद कर एक मस्जिद की तामीर शुरू की जो मस्जिद नबवी कहलाई। इस तामीर में उन्हों ने ख़ुद भी हिस्सा लिया। यहां हुज़ूर v ने मुस्लमानों के दरमयान उक़द-ए-माख़ात किया यानी मुस्लमानों को इस तरह भाई बनाया कि अंसार में से एक को मुहाजिरीन में से एक का भाई बनाया। ख़ुद हज़रत अली अलैहि अस्सलाम को अपना भाई क़रार दिया। अंसार ने मुहाजिरीन की मिसाली मदद की। हिज्रत के साथ ही इस्लामी कैलिंडर का आग़ाज़ भी हुआ । इसी दौर में मुस्लमानों को काअबा की तरफ़ नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया, इस से पहले मुस्लमान बैत-उल-मुक़द्दस की तरफ़ मना कर के नमाज़ अदा करते थे जो कि यहूदीयों का भी क़िबला था।

मीसाक़ मदीना को बजा तौर पर तारीख़ इंसानी का पहला तहरीरी दस्तूर क़रार दिया जा सकता है। ये 730 अलफ़ाज़ पर मुश्तमिल एक जामि दस्तूर है जो रियासत मदीना का आईन था। 622 ए- में होने वाले इस मुआहिदे की 53 दफ़आत थीं।

मदीना में एक रियासत क़ायम करने के बाद मुस्लमानों को अपने दिफ़ा की कई जंगें लड़ना पढ़ें। इन में से जिन में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम शरीक थे उन्हें ग़ज़वा कहते हैं और जिन में वो शरीक नहीं थे उन्हें सरिया कहा जाता है। अहम ग़ज़वात या सरयात दर्ज जे़ल हैं।

ग़ज़वा बदर : 17 रमज़ान 2 हिज्री (17 मार्च 624 -ए-) को बदर के मुक़ाम पर मुस्लमानों और मुशरिकीन-ए-मक्का के दरमयान ग़ज़वा बदर हुई। मुस्लमानों की तादाद 313 जबकि कुफ़्फ़ार मक्का की तादाद 1300 थी। मुस्लमानों को जंग में फ़तह हुई। 70 मुशरिकीन-ए-मक्का मारे गए जिन में से 36 हज़रत अली रज़ी अल्लाह ताला अनहु की तलवार से हलाक हुए। मुशरिकीन 70 जंगी क़ैदीयों को छोड़ कर भाग गए। मुस्लमान शुहदा की तादाद 14 थी।

ग़ज़वा उहद :7 शवाल 3 हिज्री (23 मार्च 625-ए-) में अबू सुफ़ियान कुफ़्फ़ार के 3000 लश्कर के साथ मदीना पर हमला आवर हुआ। अह्द के पहाड़ के दामन में होने वाली ये जंग ग़ज़वा अह्द कहलाई । इबतिदा में मुस्लमानों ने कुफ़्फ़ार को भागने पर मजबूर कर दिया। टीले पर मौजूद लोगों ने भी ये सोचते हुए कि फ़तह हो गई है कुफ़्फ़ार का पीछा करना शुरू कर दिया या माल-ए-ग़नीमत इकट्ठा करना शुरू कर दिया। ख़ालिद बिन वलीद जो अभी मुस्लमान नहीं हुए थे इस बात का फ़ायदा उठाया और मुस्लमानों पर पिछली तरफ़ से हमला कर दिया । इस जंग से मुस्लमानों को ये सबक़ मिला कि किसी भी सूरत में रसूल अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के हुक्म की ख़िलाफ़ वरज़ी ना करें।

ग़ज़वा ख़ंदक़ (एहज़ाब): शवाल। ज़ी अल क़ादा 5 हिज्री (मार्च 627-ए-) में मुशरिकीन-ए- मक्का ने मुस्लमानों से जंग की ठानी मगर मुस्लमानों ने हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ी अल्लाह ताला अनहु के मश्वरा से मदीना के इर्दगिर्द एक ख़ंदक़ खोद ली। मुशरिकीन-ए-मक्का इन का कुछ ना बिगाड़ सके। ख़ंदक़ खोदने की अरब में ये पहली मिसाल थी क्योंकि असल में ये ईरानियों का तरीक़ा था। एक माह के मुहासिरे और अपने कई अफ़राद के क़तल के बाद मुशरिकीन मायूस हो कर वापिस चले गए। बाअज़ रवायात के मुताबिक़ एक आंधी ने मुशरिकीन के खे़मे उखाड़ फेंके।

ग़ज़वा बनी क़ुरैज़ा: ज़ी अलक़ादा । ज़ी अल हजा 5 हिज्री (अप्रैल 627-ए-) को ये जंग हुई। मुस्लमानों को फ़तह हासिल हुई।

ग़ज़वा बनी मुस्तलक़: शाबान 6 हिज्री (दिसंबर 627-ए-। जनवरी 628-ए-) में ये जंग बनी मुस्तलक़ के साथ हुई। मुस्लमान फ़त्ह याब हुए।

ग़ज़वा ख़ैबर: मुहर्रम 7 ह (मई 628-ए-) में मुस्लमानों और यहूदीयों के दरमयान ये जंग हुई जिस में मुस्लमान फ़त्हयाब हुए।

जंग मौता: 5 जमादी उल अव्वल 8 हिज्री (अगस्त । सितंबर 629-ए-) को मौता के मुक़ाम पर ये जंग हुई। इस में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम शरीक नहीं हुए थे इस लिए उसे ग़ज़वा नहीं कहते।

ग़ज़वा फ़तह (फ़तह-ए-मक्का): रमज़ान 8 हिज्री (जनवरी 630-ए-) में मुस्लमानों ने मक्का फ़तह किया। जंग तक़रीबन ना होने के बराबर थी क्योंकि मुस्लमानों की हैबत से मुशरिकीन-ए-मक्का डर गए थे। इस के बाद मक्का की अक्सरीयत मुस्लमान हो गई थी।

ग़ज़वा हुनीन: शवाल 8 हिज्री (जनवरी । फरवरी 630-ए-) में ये जंग हुई। पहले मुस्लमानों को शिकस्त हो रही थी मगर बाद में वो फ़तह में बदल गई।

ग़ज़वा तबूक: रजब 9 हिज्री (अक्तूबर 630-ए-) में ये अफ़्वाह फैलने के बाद कि बाज़ नितीनियों ने एक अज़ीम फ़ौज तैय्यार कर के शाम के महाज़ पर रखी है। इस लिए मुस्लमान एक अज़ीम फ़ौज तैय्यार कर के शाम की तरफ़ तबूक के मुक़ाम पर चले गए। वहां कोई दुश्मन फ़ौज ना पाई इस लिए जंग ना हो सकी मगर इस इलाक़े के कई क़बाइल से मुआहिदे हुए और जुज़्य मिलने लगा ।

सुलह हुदैबिया: मदीना और मुशरिकीन-ए-मक्का के दरमयान मार्च 628-ए-को एक मुआहिदा हुआ जिसे सुलह हुदैबिया कहते हैं। 628ए- (6 हिज्री) में 1400 मुस्लमानों के हमराह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम मदीना से मक्का की तरफ़ उमरा के इरादा से रवाना हुए। मगर अरब के रिवाज के ख़िलाफ़ मुशरिकीन-ए-मिका ने हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (जो बाद में मुस्लमान हो गए) की क़ियादत में दो सौ मुसल्लह सवारों के साथ मुस्लमानों को हुदैबिया के मुक़ाम पर मक्का के बाहर ही रोक लिया। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की दानिशमंदी से सुलह का मुआहिदा हो गया। इस की बुनियादी शक़ ये थी कि दस साल तक जंग नहीं लड़ी जाएगी और मुस्लमान इस साल वापिस चले जाऐंगे और उमरा के लिए अगले साल आयेंगे। चुनांचे मुस्लमान वापिस मदीना आए और फिर 629-ए-में हज किया।

सुलह हुदैबिया के बाद मुहर्रम 7 हिज्री में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने मुख़्तलिफ़ हुकमरानों को ख़ुतूत लिखे और अपने सफ़ीरों को इन ख़ुतूत के साथ भेजा। इन ख़ुतूत में इस्लाम की दावत दी गई। इन में से एक ख़त तुर्की के तोप कापी नामी अजाइब घर में मौजूद है। इन हुकमरानों में फ़ारस का बादशाह ख़ुसरो परवेज़, मशरिक़ी रुम (बाज़ नितीन) का बादशाह हरकोलैस, हब्शा का बादशाह नजाशी, मिस्र और सिकंदरीया का हुकमरान मक़ूक़स और यमन का सरदार शामिल हैं। परवेज़ ने ये ख़त फाड़ दिया था । नजाशी ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की नबुव्वत की तसदीक़ की और कहा कि हमें इंजील में उन के बारे में बताया गया था। मिस्र और सिकंदरीया के हुकमरान मक़ूक़स ने नरम जवाब दिया।

अगरचे सुलह हुदैबिया की मुद्दत दस साल तै की गई थी ताहम ये सिर्फ दो बरस ही नाफ़िज़ रह सका। एक रात बनू बिक्र के कुछ आदमीयों ने शब ख़ून मारते हुए बनू क़ज़ा के कुछ लोग क़तल कर दिए। क़ुरैश ने हथियारों के साथ अपने इत्तिहादियों की मदद की। इस वाक़िया के बाद नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने क़ुरैश को एक तीन नकाती पैग़ाम भेजा और कहा कि इन में से कोई मुंतख़ब कर लें: 1। क़ुरैश बनू क़ज़ा को ख़ून बहा अदा करे, 2। बनू बिक्र से ताल्लुक़ तोड़ लें, 3। सुलह हुदैबिया को कुलअदम क़रार दें।

क़ुरैश ने जवाब दिया कि वो सिर्फ़ तीसरी शर्त तस्लीम करेंगे। ताहम जल्द ही उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ और अबू सुफ़ियान को मुआहिदे की तजदीद के लिए रवाना किया गया लेकिन नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने इस की दरख़ास्त रद्द कर दी।

630 ए- में उन्हों ने दस हज़ार मुजाहिदीन के साथ मक्का की तरफ़ पेशक़दमी शुरू कर दी। मुस्लमानों की हैबत देख कर बहुत से मुशरिकीन ने इस्लाम क़बूल कर लिया और नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने आम माफ़ी का ऐलान किया। नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम फ़ातिह बन कर मक्का में दाख़िल हो गए। दाख़िल होने के बाद सब से पहले आप ने काअबा में मौजूद तमाम बुत तोड़ डाले और शिर्क-ओ-बुतपरस्ती के ख़ातमे का ऐलान किया।

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने अपनी ज़िंदगी का आख़िरी हज सन् 10 हिज्री में किया। उसे हजअ त्प्ल विदा कहते हैं। आप 25 ज़ील क़ादा 10 हिज्री (फरवरी 632-ए-) को मदीना से रवाना हुए। आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की अज़्वाज आप के साथ थीं। मदीना से 9 किलो मीटर दूर ज़वाल हलीफ़ा के मुक़ाम पर आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने एहराम पहना। दस दिन बाद आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम मक्का पहुंच गए। हज में मुस्लमानों की तादाद एक लाख बीस हज़ार से ज़्यादा थी। अर्फ़ा के दिन एक ख़ुतबा दिया और इस से अगले दिन मुंह में एक यादगार ख़ुतबा दिया जो ख़ुतबा हजअ त्प्ल विदा के नाम से मशहूर है।

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के बेशुमार मोजज़ात हैं यहां ईमान की ताज़गी के लिए सिर्फ चंद का ज़िक्र किया जाता है।

नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बरकत से पानी का मसला हल हो गया:

हज़रत बराइ बन आज़िब रज़ी अल्लाह ताला अनहु फ़रमाते हैं वाक़िया हुदैबिया के रोज़ हमारी तादाद चौदह सौ थी। हम हुदैबिया के कुँवें से पानी निकालते रहे यहां तक कि हम ने इस पानी का एक क़तरा भी ना छोड़ा। सो हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम कुँवें के मुंडेर पर आ बैठे और पानी तलब फ़रमाया: इस से कली फ़रमाई और वो पानी कुँवें में डाल दिया थोड़ी ही देर बाद हम इस से पानी पीने लगे, यहां तक कि ख़ूब सेराब हुए ओर हमारे सवारीयों के जानवर भी सेराब हो गए। सही बुख़ारी: किताब अलुमिना कब: बाब अलामात नबुव्वत फ़ी इस्लाम

नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  की ज़ात पाक की बरकत से सहाबी का क़र्ज़ अदा हो गया:

हज़रत जाबिर रज़ी अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है कि मेरे वालिद वफ़ात पा गए और उन के ऊपर क़र्ज़ था। सो में हुज़ूर नबी अकरम की सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया: मेरे वालिद ने (वफ़ात के बाद ) पीछे क़र्ज़ा छोड़ा है और मेरे पास ( उस की अदायगी के लिए) कुछ भी नहीं मा सिवाए जो खजूर के दरख़्तों से पैदावार हासिल होती है और उन से कई साल में भी क़र्ज़ अदा नहीं होगा। आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम मेरे साथ तशरीफ़ ले चलें ताकि क़र्ज़ख़ाह मुझ पर सख़्ती ना करें सो आप (उन के साथ तशरीफ़ ले गए और उन के) ख़जूरों के ढेरों में से एक ढेर के गर्द फिरे और दुआ की फिर दूसरे ढेर(के साथ भी ऐसा ही किया) इस के बाद आप एक ढेर पर बैठ गए और फ़रमाया: क़र्ज़ ख्वाहों को माप कर देते जाओ सो सब क़र्ज़ ख्वाहों का पूरा क़र्ज़ अदा कर दिया गया और उतनी ही खजूरें बीच भी गईं जितनी कि क़र्ज़ में दी थीं। सही बुख़ारी : किताब अलुमिना कब: बाब अलामात अलनबोऩ फ़ी उल-इस्लाम वफ़ी किताब अलबीवा:बाब अलकील अली अलबाइअ वालमाती,वाहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद

नबी पाक  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुआ से डूबा सूरज फिर तलूअ हो गया:

हज़रत असमाइ बनत अमीस रज़ी अल्लाह ताला अनहु से मर्वी है कि हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम पर वही नाज़िल हो रही थी और आप का सर अक़्दस हज़रत अली रज़ी अल्लाह ताला अनहु की गोद में था वो अस्र की नमाज़ ना पढ़ सके यहां तक कि सूरज ग़ुरूब हो गया। हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने दुआ की: ए अल्लाह(अज़्ज़-ओ-जल) ! अली तेरी और तेरे रसूल की इताअत में था इस पर सूरज वापिस लौटा दे। हज़रत असमाइ फ़रमाती हैं: मैं ने उसे ग़ुरूब होते हुए भी देखा और ये भी देखा कि वो ग़ुरूब होने के बाद दुबारा तलूअ हुआ। उख़र जा अलतबरानी फ़ी अलमाजम अल-कबीर, वालहीसमी फ़ी मजमा अलज़वाइद, वालज़हबी फ़ी मीज़ान अलाअतदाल, इबन कसीर फ़ी अलबदाएऩ वालनहाएऩ,वालक़ा ज़ी ईआज़ फ़ी अलशफ़ाई, वालसीवती फ़ी अलख़सा स अलकबरी, वाल्कर तिब्बी फ़ी उल-जामे अलाहकाम अलक़र आन,रवाह अलतबरानी बासानीद , विकाल अलामाम अलनोवी फ़ी शरह मुस्लिम 

नबी पाक  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  की बरकत से चमड़े के बर्तन से घी मिल जाता:

हज़रत जाबिर रज़ी अल्लाह ताला अनहु  से रिवायत है कि हज़रत उम मालिक रज़ी अल्लाह ताला अनहु हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  को एक चमड़े के बर्तन में घी भेजा करती थीं, उन के बेटे आ  कर उन से सालन मांगते , उन के पास कोई चीज़ नहीं होती थी,  तो जिस चमड़े के बर्तन में वो हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  के लिए घी भेजा करतीं इस का रुख करतीं इस में से उन्हें घी मिल जाता, उन के घर में सालन का मसला इसी तरह हल होता रहा यहां तक कि उन्हों ने एक दिन इस चमड़े के बर्तन को निचोड़ लिया फिर वो हुज़ूर नबी अकरम  सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुईं। आप ने फ़रमाया: तुम ने चमड़े के बर्तन को निचोड़ लिया  ? उन्हों ने अर्ज़ किया: हाँ या रसूल अल्लाह  सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम !आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  ने फ़रमाया: अगर तुम उसे इसी तरह रहने देतीं तो इस से हमेशा (घी )मिलता रहता। सही मुस्लिम: किताब अलफ़ज़ाइल : बाब फ़ी मोजज़ात उन्नबी , वा  हमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद,वालासक़लानी फ़ी तहज़ीब, वफ़ी फ़तह अलबारी

हुज़ूर  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  के अता किए खाने में बरकत हो गई:

हज़रत जाबिर रज़ी अल्लाह ताला अनहु  रिवायत करते हैं कि एक शख़्स ने हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  की ख़िदमत अक़्दस में हाज़िर हो कर कुछ खाना तलब किया। आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  ने उसे निस्फ़ वसक़  (एक सौ बीस किलो ग्राम) जो दे दीए। वो शख़्स उस की बीवी और इन दोनों के मेहमान भी वही जो खाते रहे यहां तक कि एक दिन उन्हों ने इन को माप लिया। फिर वो हुज़ूर  सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की ख़िदमत में आया तो आप सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  ने फ़रमाया: अगर तुम उस को ना मापते तो तुम वो जो खाते रहते और वो यूंही (हमेशा) बाक़ी रहते। सही मुस्लिम :किताब उल-फ़िज़ा ल :बाब फ़ी मोजज़ात उन्नबी , वाहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद

फ़रिश्तों का लड़ाई में हिस्सा लेना:

हज़रत साद बिन अबी विक़ास रज़ी अल्लाह ताला अनहु  से रिवायत है कि जंग अह्द के रोज़ मैंने हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम  के पास दो ऐसे हज़रात को देखा जो आप की जानिब से लड़ रहे थे उन्हों ने सफ़ैद कपड़े पहने हुए थे बड़ी बहादुरी से बरसर पैकार थे में उन्हें इस से पहले देखा था ना बाद में यानी जिब्राईल-ओ-मीकाईल अलैहि अस्सलाम थे। सही बुख़ारी : किताब अलमग़ाज़ी:बाब अज़ हिम्मत ता फ़तान मणिकम इन तफ़शला वल्लाह वलीहा वाली अल्लाह फ़लीतोकल इल्मो मनून ,वफ़ी किताब अललबास:बाब अलसयाब अलबीज़,सही मुस्लिम:किताब अलफ़ज़ाइल:बाब फ़ी क़िताल जिब्रील वमीकाईल अन उन्नबी यौम अह्द, वाहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद, वालशा शि फ़ी अलमसनद, वालज़हबी फ़ी सैर आलाम अलनबलाए-ए-, वालख़तीब अलतबरीज़ी फ़ी मशकाऩ अलमसा बया: किताब अहवाल अलक़यामऩ वबदालख़लक़:बाब फ़ी अलमाजज़ात अलफ़सल उलअव्वल

जंग में क़तल किए जाने वाले काफ़िरों की क़तल की जगह की पहले ही निशानदेही कर दी:

हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाह ताला अनहु से रिवायत करते हैं कि जब हम को अबूसुफ़ियान के(शाम से क़ाफ़िला के) आने की ख़बर पहुंची तो हुज़ूर नबी अकरम ने सहाबा किराम से मश्वरा फ़रमाया।हज़रत साद बिन उबादा रज़ी अल्लाह ताला अनहु ने खड़े हो कर अर्ज़ क्या: या रसूल अल्लाह ()! उस ज़ात की क़सम जिस के क़बज़ा क़ुदरत में मेरी जान है अगर आप हमें समुंद्र में घोड़े डालने का हुक्म दीन तो हम समुंद्र में घोड़े डाल देंगे, अगर आप हमें बर्क अलग़मार पहाड़ से घोड़ों के सीने टकराने का हुक्म दें तो हम ऐसा भी करेंगे। तब रसूल अल्लाह ने लोगों को बुलाया लोग आए और वादी बदर में उतरे। फिर हुज़ूर नबी अकरम ने फ़रमाया: ये फ़ुलां काफ़िर के गिरने की जगह है, आप ज़मीन पर उस जगह और कभी उस जगह अपना दस्त अक़्दस रखते, हज़रत अनस रज़ी अल्लाह ताला अनहु कहते हींका फिर (दूसरे दिन)कोई काफ़िर हुज़ूर की बताई हुई जगह से ज़रा बराबर भी इधर उधर नहीं मिरा। सही मुस्लिम :किताब अलझाद वालसीर: बाब ग़ज़ोऩ बदर,वनहोह फ़ी किताब अलजनऩ वसफ़ऩ नईहा वाहलहा:बाब अर्ज़ मक़अद अलमीयत मन अलजनऩ ओ अलनार अलैहि वासबात अज़ाब उल-क़बर वालतावज़ मुँह, अब्बू दाऊद फ़ी अलसनन:किताब अलझाद:बाब फ़ी अलासीर यनाल मुँह वीज़रब वीक़रन, वालनसाई फ़ी अलसनन:किताब अलजनाइज़ :बाब अर्वाह उल-मोमिनीन, अहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद,वालबज़ार फ़ी अलमसनद, वाबन अबी शीबऩ फ़ी अलमसनफ़, वालतबरानी फ़ी अलमाजम अलावसत,वालख़तीब अलतबरीज़ी फ़ी मशकाऩ अलमसाबीह :किताब अहवाल अलक़यामऩ वबदालख़लक़:बाब अलफ़सल उलअव्वल

शहीद होने वाले सहाबी रज़ी अल्लाह ताला अनहु की पहले ही इत्तिला दे दी:

हज़रत अनस रज़ी अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है कि हुज़ूर ने हज़रत जै़द, हज़रत जाफ़र,और हज़रत इबन रुवाहा रज़ी अल्लाह अन्हुम के मुताल्लिक़ ख़बर आने से पहले ही उन के शहीद हो जाने की मुताल्लिक़ लोगों को बता दिया था ।चुनांचे आप ने फ़रमाया:अब झंडा जै़द रज़ी अल्लाह ताला अनहु ने सँभाला हुआ है लेकिन वो शहीद हो गए, अब हज़रत जाफ़र रज़ी अल्लाह ताला अनहु ने झंडा सँभाल लिया है और वो भी शहीद हो गए। अब इबन रुवाहा ने झंडा सँभाला है और वो भी जाम शहादत नोश कर गए। ये फ़रमाते हुए आप की चश्माँ मुबारक अशक बार थीं। (फिर फ़रमाया)यहां तक कि अब अल्लाह की तलवार में से एक तलवार(हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह ताला अनहु)ने झंडा सँभाल लिया है और इस के हाथों अल्लाह ताला ने काफ़िरों पर फ़तह अता फ़रमाई। सही बुख़ारी: किताब अलमग़ाज़ी:बाब ग़ज़ोऩ मौता मन अर्ज़ अलशाम, वफ़ी किताब अलजनाइज़: बाब अलरजल यनई अली अहल अलमीयत बनफ़सा, वफ़ी किताब अलझाद:बाब तमनी अलशहादऩ, वफ़ी बाब मन ताम्र फ़ी अलहरब मुंगेर अमरऩ इज़ा खाफ अलादो, वफ़ी किताब:अलुमिना कब: बाब अलामात अलनबोऩ फ़ी उल-इस्लाम, वफ़ी किताब फ़ज़ाइल सहाबा :बाब मनाक़िब ख़ालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह ताला अनहु,वनहोह अलनसाई फ़ी अलसनन अलकबरी,वाहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद, वालहाकम फ़ी अलमसतदरक, वालतबरानी फ़ी अलमाजम अल-कबीर,वालख़तीब अलतबरीज़ी फ़ी मशकाऩ अलमसाबीह :किताब अहवाल अलक़यामऩ-ओ-बदाइआलख़लक़:बाब फ़ी अमाजज़ात , अलफ़सल उलअव्वल

एक मुर्तद शख़्स की मौत के अंजाम को मरने से पहले ही ब्यान फ़र्मा दिया:

हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाह ताला अनहु एक तवील रिवायत में ब्यान करते हैं कि एक आदमी जो हुज़ूर के लिए किताबत किया करता था वो इस्लाम से मुर्तद हो गया और मुश्रिकों से जा कर मिल गया और कहने लगा में तुम में से सब ज़्यादा मुहम्मद () को जानने वाला हूँ में आप के लिए जो चाहता था लिखता था सो वो शख़्स जब मर गया तो हुज़ूर नबी अकरम ने फ़रमाया: उसे ज़मीन क़बूल नहीं करेगी। हज़रत अनस रज़ी अल्लाह ताला अनहु फ़रमाते हैं: कि उन्हें अब्बू तलहा ने फ़रमाया: वो इस ज़मीन पर आए जहां वो मिरा था तो देखा उस की लाश क़ब्र से बाहर पड़ी थी। पूछा इस का क्या हाल है? लोगों ने कहा: हम ने उसे कई बार दफ़न किया मगर ज़मीन ने उसे क़बूल नहीं किया। उख़र जा मुस्लिम नहोह फ़ी सही: किताब सिफ़ात अलमनाफ़क़ीन-ओ-अहकाहम, वाहमद बिन हनबल फ़ी अलमसनद, वालबीहक़ी फ़ी अलसनन अलसग़री, वाबद बिन हमीद फ़ी अलमसनद, वाबू अलमहासन फ़ी मोतसिर उल-मुख़्तसर, वालख़तीब अलतबरीज़ी फ़ी मशकाऩ अलमसाबीह :किताब अहवाल अलक़यामऩ वबदालख़लक़:बाब फ़ी अलमाजज़ात , अलफ़सल उलअव्वल

खजूर का गुच्छा हुक्म नबी पर हाज़िर ख़िदमत हो गया:

हज़रत इबन अब्बास रज़ी अल्लाह ताला अनहु से मर्वी है कि एक आराबी हुज़ूर नबी अकरम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया:मुझे कैसे मालूम हो कि आप नबी हैं? आप ( )ने फ़रमाया: अगर मैं खजूर के इस दरख़्त के इस गुच्छे को बुलाऊं तू तो गवाही देगा कि मैं अल्लाह ताला का रसूल हूँ, फिर आप ने उसे बुलाया तो वो दरख़्त से उतरने लगा यहां तक कि हुज़ूर नबी अकरम के पास आकर गिरा। फिर आप ने फ़रमाया: वापिस हो जा वो वापिस(अपनी जगह)चला गया, पस वो आराबी ने इस्लाम क़बूल कर लिया। तिरमिज़ी फ़ी अलसनन:किताब अलुमिना कब उन रसूल अल्लाह :बाब6, वालहाकम फ़ी अलमसतदरक, वालतबरानी फ़ी अलमाजम अल-कबीर, अलख़तीब अलतबरीज़ी फ़ी मशकाऩ अलमसा बया :किताब अहवाल अलक़यामऩ वबदालख़लक़:बाब फ़ी अलमाजज़ात अलफ़सल एलिसानी

हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दस्त अक़्दस की बरकत:

हज़रत अब्बू जै़द अख़्तब रज़ी अल्लाह ताला अनहु से मर्वी है कि हुज़ूर नबी अकरम ने अपना दस्त अक़्दस मेरे चेहरे पर फेरा और मेरे लिए दुआ फ़रमाई , उज़रा(रावी) कहते हैं कि अब्बू जै़द एक सौ बीस साल ज़िंदा रहे और उन के सर में सिर्फ चंद बाल सफ़ैद थे। उख़र जा अलतर मज़ी फ़ी अलसनन:किताब अलुमिना कब उन रसूल अल्लाह :बाब 6, वालतबरानी फ़ी अलमाजम अल-कबीर, वालहीसमी फ़ी मजमा अलज़वाइद, अशीबानी य अलाहार-ओ-अलमसानी

सहाबी की निकली आँख हुज़ूर की दुआ की बरकत से दुबारा ठीक हो गई:

हज़रत क़तादा बिन नोमान रज़ी अल्लाह ताला अनहु से मर्वी है कि ग़ज़वा बदर के दिन (तीर लगने से) उन की आँख ज़ाए हो गई और ढीला निकल कर चेहरे पर बह गया। दीगर सहाबा ने उसे काट देना चाहा। जब रसूल अल्लाह से पूछा गया तो आप ने मना फ़र्मा दिया।फिर आप ने दुआ फ़रमाई और आँख को दुबारा इस के मुक़ाम पर रख दिया । सो हज़रत क़तादा रज़ी अल्लाह ताला अनहु की आँख इस तरह ठीक हो गई कि मालूम भी ना होता था कि कौन सी आँख ख़राब है। उख़र जा अब्बू यअली फ़ी अलमसनद, वालहीसमी फ़ी मजमा अलज़वाइद , वाब साद फ़ी अलतबक़ात , वालज़हबी फ़ी सैर आलाम अलनबला-ए-, वालासक़लानी फ़ी थज़ीब अलथज़ीब

सहाबी रज़ी अल्लाह ताला अनहु की टूटी पिंडली हुज़ूर की बरकत से दुबारा जुड़ गई:

हज़रत बराइबन आज़िब रज़ी अल्लाह ताला अनहु से रिवायत है कि हुज़ूर नबी अकरम ने अब्बू रा फा यहूदी की तरफ़ चंद अंसारी मर्दों को भेजा और अबद अल्लाह बिन अतीक रज़ी अल्लाह ताला अनहु को उन पर अमीर मुक़र्रर किया। अब्बू राफ़े हुज़ूर नबी अकरम को तकलीफ़ पहुंचाता था और आप के ख़िलाफ़ मदद करता था और सरज़मीन हिजाज़ में अपने क़िला में रहता था।।।।(हज़रत अबदुल्लाह बिन अतीक रज़ी अल्लाह ताला अनहु ने अब्बू राफ़े यहूदी के क़तल का वाक़िया ब्यान करते हुए फ़रमाया)मुझे यक़ीन हो गया कि मैंने उसे क़तल कर दिया है। फिर मैंने एक एक कर के तमाम दरवाज़े खोल दीए यहां तक कि ज़मीन पर आरहा। चांदनी रात थी में गिर गया और मेरी पिंडली टूट गई तो मैंने उसे इमामा से बांध दिया।।।।फिर मैं हुज़ूर नबी अकरम की ख़िदमत अक़्दस में हाज़िर हुआ और सारा वाक़िया अर्ज़ कर दिया। आप ने फ़रमाया: पांव आगे करो। मैं पांव फैला दिया। आप ने इस पर दस्त करम फेरा तो टूटी हुई पिंडली जुड़ गई और फिर कभी दर्द तक ना हुआ। सही बुख़ारी :किताब अलमग़ाज़ी:बाब क़तल अबी राफ़े अबद अल्लाह बिन अबी अलहक़ीक़, वालबीहक़ी फ़ी अलसनन अलकबरी, वाला सुभानी फ़ी दलायल अलनबोऩ, वाबन अबद अल्बर फ़ी अलासतीआब, वालतबरी फीता रेख अलामम वालमलोक, वाबन कसीर फ़ी अलबदाएऩ वालनहाएऩ

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बरकत से अब्बू हुरैरा को हैरानकुन हाफ़िज़ा अता हुआ:

हज़रत अब्बू हुरैरा रज़ी अल्लाह ताला अनहु रिवायत करते हैं कि मैंने अर्ज़ क्या: या रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम)! में आप से बहुत कुछ सुनता हूँ मगर भूल जाता हूँ तो आप ने फ़रमाया: अपनी चादर फैलाओ? मैंने अपनी चादर फैला दी। आप ने चुल्लू भर भर कर इस में डाल दीए और फ़रमाया: उसे सीने से लगा लो। मैंने ऐसा ही किया : पस इस के बाद में कभी कुछ नहीं भोला। सही बुख़ारी: किताब अलालम:बाब हिफ़्ज़ अलालम, सही मुस्लिम:किताब फ़ज़ाइल अलसहाबऩ:बाब मन फ़ज़ाइल अबी हरीरऩ अलदोसी रज़ी अल्लाह ताला अनहु, वालतर मज़ी फ़ी अलसनन:किताब अलुमिना कब उन रसूल अल्लाह :बाब मनाक़िब लॉबी हरीरऩ रज़ी अल्लाह ताला अनहु, वालतबरानी फ़ी अलमाजम अलावसत, वाबू यअली फ़ी अलमसनद

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की मुख़्तलिफ़ रवायात में ग्यारह से तेराह अज़्वाज के नाम मिलते हैं। ज़्यादा तर पहले बेवा थीं और उम्र में भी ज़्यादा थीं और ज़्यादा शादीयों का अरब में आम रिवाज था। मुअर्रिख़ीन के मुताबिक़ अक्सर शादियां मुख़्तलिफ़ क़बाइल से इत्तिहाद के लिए या उन ख़वातीन को इज़्ज़त देने के लिए की गईं। इन में से अक्सर सन रसीदा थीं इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम पर कसरत इज़दवाज का इल्ज़ाम लगाने वालों की दलीलें नाकारा हो जाती हैं। इन में से सिर्फ़ हज़रत ख़दीजा और हज़रत ज़ैनब बिंत जह्श से औलाद हुई। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की अज़्वाज को उम्हात अलममनीन कहा जाता है यानी मुमिनीन की माएं। उन के नाम और कुछ हालात दर्ज जे़ल हैं।

हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा:। आप सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम ने नबुव्वत से क़बल 25 बरस की उम्र में हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा से शादी की। हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा आप सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम की पहली बीवी थीं और आप की औलाद में हज़रत इबराहीम रज़ी अल्लाह अन्ना के सिवा तमाम साहबज़ादे और साहिबज़ इदेहयाँ उन के ही बतन से हुईं

हज़रत सौदा बिंत ज़िम्मा रज़ी अल्लाह अनहा :। उन के पहले ख़ावंद (जिन के साथ उन्हों ने हब्शा की तरफ़ हिज्रत की थी) का इंतिक़ाल हब्शा में हुआ तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन से शादी कर के उन के ईमान का तहफ़्फ़ुज़ किया क्योंकि उन के क़बीला के तमाम अफ़राद मुशरिक थे।

हज़रत ज़ैनब बिंत ख़ुज़ैमा रज़ी अल्लाह अनहा :। उन के पहले शौहर हज़रत अबदुल्लाह बिन जह्श की शहादत जंग अह्द में हुई जिस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन से शादी कर ली।

हज़रत उम सलमा हिंद रज़ी अल्लाह अनहा :। आप पहले अबदुल्लाह अब्बू सलमा की ज़ौजीयत में थीं और काफ़ी सन रसीदा थीं। उन के शौहर के इंतिक़ाल के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन से शादी की।

हज़रत सफिया बिंत ही बिन अख़्तब रज़ी अल्लाह अनहा :। इन का शौहर जंग ख़ैबर में मारा गया और ये गिरफ़्तार हो कर आएं थीं। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन्हें आज़ाद कर के उन से अक़द कर लिया।

हज़रत जुवेरिया बिंत इलहा रस रज़ी अल्लाह अनहा :। ये एक जंग की क़ैदीयों में थीं और उन के साथ उन के क़बीला के दो सौ अफ़राद भी क़ैद हो कर आए थे। मुस्लमानों ने सब को आज़ाद कर दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने हज़रत जुवेरिया से शादी कर ली तो तमाम क़बीला के अफ़राद मुस्लमान हो गए।

हज़रत मैमूना बिंत इलहा रस ह रज़ी अल्लाह अनहा :। उन्हों ने अपने शौहर के इंतिक़ाल के बाद ख़ुद हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम से अक़द की ख़ाहिश की जिसे हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने क़बूल किया।

हज़रत उम हबीबा रज़ी अल्लाह अनहा:। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन से शादी की तो ये मुस्लमान थीं मगर उन के वालिद अबूसुफ़ियान ने इस्लाम क़बूल नहीं किया था। रवायात में आता है कि हज़रत एम-ए-हबीबा अपने वालिद अबूसुफ़ियान को हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम की चादर पर नहीं बैठने देती थीं क्योंकि उस वक़्त अबूसुफ़ियान मुशरिक थे।

हज़रत हफ़सा बिंत उम्र रज़ी अल्लाह अनहा :। आप हज़रत उम्र रज़ी अल्लाह ताला अन्ना की बेटी थीं। आप के शौहर ख़ीस बिन हज़ इक्का जंग बदर में मारे गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने उन से शादी की।

हज़रत आईशा बिंत अबी बिक्र रज़ी अल्लाह अनहा:। आप हज़रत अबूबकर रज़ी अल्लाह ताला अन्ना की बेटी थीं और कमउमर थीं और पहली शादी ही हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम से हुई। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम के बाद काफ़ी अर्सा ज़िंदा रहें। उन से बेशुमार अहादीस मर्वी हैं।

हज़रत ज़ैनब बिंत जह्श रज़ी अल्लाह अनहा:। उम ज़ैनब और कुनिय्यत उम अलहकम थी। वालिद का नाम जह्श बिन रबाब और वालिदा का नाम अमीमा था जो हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम की फूफी थीं। इस तरह हज़रत ज़ैनब रज़ी अल्लाह अनहा हुज़ूर अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम की फूफीज़ाद थीं।हज़रत ज़ैनब का पहला निकाह हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम के मुँह बोले बेटे जै़द बिन हारिसा रज़ी अल्लाह अन्ना से हुआ।लेकिन ताल्लुक़ात बहुत ज़्यादा नाख़ुशगवार होने लगे तो हज़रत जै़द बिन हारिसा रज़ी अल्लाह अन्ना ने उन्हें तलाक़ दे दी।जब जै़द बिन हारिसा रज़ी अल्लाह अन्ना ने आप को तलाक़ दे दी तो अल्लाह ताला ने सूरा एहज़ाब की आयत नाज़िल फ़र्मा कर आप सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम को हज़रत ज़ैनब रज़ी अल्लाह अनहा से निकाह करने का हुक्म दिया

हज़रत मारिया अलक़बतीह रज़ी अल्लाह अनहा:। बाअज़ रवायात के मुताबिक़ आप कनीज़ा थीं मगर ज़्यादा रवायात के मुताबिक़ आप से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम ने शादी की थी चुनांचे आप भी अमहात-ऊल-मोमनीन में शामिल हैं।

हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम की औलाद:। नबी सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम की औलाद की तादाद सात जिन में तीन बेटे और चार बेटियां हैं जिन की तफ़सील ये है।

हज़रत क़ासिम रज़ी अल्लाह तआला अन्ना:। हज़रत क़ासिम बिन मुहम्मद (अरबी: अलक़ा सिम बिन मुहम्मद) हुज़ूर पाक सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम और हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा के बेटे थे। आप सगर सुनी में ही इंतिक़ाल करगए, जब आप की उम्र महिज़ दो साल से भी कम थी। आप को जन्नत अलमाला, मक्का, सऊदी अरब में दफ़न किया गया।

हज़रत अबद अल्लाह रज़ी अल्लाह तआला अन्ना:। हज़रत अबद अल्लाह बिन मुहम्मद (अरबी:अबद अल्लाह बिन मुहम्मद) या ताहिर बिन मुहम्मद और तुय्यब बिन मुहम्मद भी कहा जाता है हुज़ूर पाक सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम और हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा के बेटे थे। आप भी सगर सुनी में ही इंतिक़ाल करगए। अलक़ा सिम बिन मुहम्मद आप के बड़े भाई थे।

हज़रत इबराहीम रज़ी अल्लाह तआला अन्ना:। हज़रत इबराहीम बिन मुहम्मद (अरबी:इब्राहीम बिन मुहम्मद) हुज़ूर पाक सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम और मारिया अलक़बतीह रज़ी अल्लाह अनहा के बेटे थे। इन का नाम हुज़ूर पाक सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम के जद अमजद हज़रत इब्राहीम अलैहि अस्सलाम के नाम पर रखा गया था।आप 16 या 18 माह की उम्र में इंतिक़ाल कर गए थे।

हज़रत ज़ैनब रज़ी अल्लाह तआला अनहा:। हज़रत ज़ैनब रज़ी अल्लाह अनहा हज़रत मुहम्मद मुस्तुफ़ाई सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम की सब साहबज़ादियों में बड़ी थीं जो बिअसत से दस साल क़बल पैदा हुईं। कमसिनी में ही यानी नबुव्वत से क़बल उन की शादी ख़ालाज़ाद भाई अब्बू उल्लास के साथ हुई जो हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा की हक़ीक़ी बहन के बेटे थे।

हज़रत रुक़य्या रज़ी अल्लाह तआला अनहा:। हज़रत मुहम्मद सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम की औलाद में दूसरी साहबज़ादी हज़रत रुक़य्या रज़ी अल्लाह अनहा थीं। आप हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अनहा के बतन से नबुव्वत से सात साल क़बल पैदा हुईं। नबुव्वत से क़बल आप का निकाह अब्बू लहब के बेटे अतबा से हुआ लेकिन रुख़्सती से क़बल ही तलाक़ हो गई जिस की वजह अब्बू लहब की इस्लाम दुश्मनी थी।

हज़रत उम कुलसूम रज़ी अल्लाह तआला अनहा:। हज़रत उम कुलसूम रज़ी अल्लाह अनहा हज़रत मुहम्मद सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम की तीसरी साहबज़ादी थीं। नबुव्वत से कुछ अर्सा क़बल पैदा हुईं।हज़रत उम कुलसूम का निकाह अब्बू लहब के दूसरे बेटे अतीबा से हुआ था लेकिन रुख़्सती से क़बल तलाक़ होगई जिस की वजह अब्बू लहब की इस्लाम दुश्मनी थी।

हज़रत फ़ातिमा रज़ी अल्लाह तआला अनहा:। हज़रत फ़ातमৃ अलज़हरा रज़ी अल्लाह तआला अनहा हज़रत मुहम्मद सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला वसल्लम और हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह तआला अनहा चौथी साहबज़ादी थीं।आप की विलादत 20 जमादी एलिसानी बरोज़ जुमा बिअसत के पांचवें साल में मक्का में हुई। आप की शादी हज़रत अली करम अल्लाह वजहा से हुई जिन से आप के दो बेटे हज़रत हुस्न और हज़रत हुसैन और दो बेटियां हज़रत ज़ैनब और हज़रत उम कुलसूम पैदा हुईं।

हुज़ूर का दुनिया से ज़ाहिरी पर्दा :। बावला ख़र ६३ साल की उम्र में बरोज़ पैर १२ रबी उलअव्वल ग्यारह हिज्री को रफ़ीक़ आला से जा मिले और उन ज़ाहिरी आँखों से ओझल होगए। जब आप इस दुनिया से रुख़स्त हुए उस वक़्त आप की उम्र 63 बरस थी। हज़रत अली अलैहि अस्सलाम ने ग़ुसल-ओ-कफ़न दिया और अस्हाब की मुख़्तलिफ़ जमातों ने यके बाद दीगरे नमाज़-ए-जनाज़ा अदा की और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम को मस्जिद नबवी के साथ मुल्हिक़ उन के हुजरे में उसी जगह दफ़न किया गया जहां आप ने इस जहां से पर्दा फ़रमाया था। ये और इस के इर्दगिर्द की तमाम जगह अब मस्जिद-ए-नबवी में शामिल है।

हुज़ूर जिस्मानी हयात के साथ आज भी ज़िंदा हैं:। उम अलममनीन सय्यदा आईशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाह अनहा के हुजरा में हयात जिस्मानी के साथ आज भी ज़िंदा हैं और उम्मतीयों के सलाम का जवाब देते और बारगाह इलाही में गुनहगारों के लिए शफ़ाअत फ़रमाते हैं।

हुस्न बिन अली, हुसैन बिन अली, अबदुर्रहमान बिन यज़ीद बिन जाबिर हज़रत ओस बिन ओस रज़ी अल्लाह ताला अन्ना से रिवायत है कि रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हारे बेहतर दिनों में एक दिन जुमा का दिन है लिहाज़ा उस दिन में मुझ पर कसरत से दरूद पढ़ा करो क्योंकि तुम्हारा दरूद मेरे सामने पेश किया जाता है लोगों ने अर्ज़ क्या या रसूल अल्लाह सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम (आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम की वफ़ात के बाद) जब आप का जिस्म मिट्टी में मिल कर ख़त्म हो जाएगा तो दरूद आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम पर किस तरह पेश किया जाएगा ? आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह ताला ने अनबया-ए-अलैहिम अस्सलाम के जिस्मों को ज़मीन पर हराम क़रार दे दिया है। सुंन अब्बू दाऊद:जलद अव्वल:हदीस नंबर 1527

" हुज़ूर का शफ़ाअत का वाअदा :। हज़रत अबद अल्लाह बिन उम्र रज़ी अल्लाह अन्हुमा ने रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम ने फ़रमाया । जिस ने मेरी क़ब्र की ज़यारत की इस के लिए मेरी शफ़ाअत वाजिब हो गई। दार क़ुतनी, अलसनन, 2 : 278 , हकीम तिरमिज़ी, नवादिर अलणसोल, 2 : 67 , बीएक़ी, शाब अलथबमान, 3 : 490, रक़म : 4159, 4160

इमाम सबकी रहमतुह अल्लाह अलैहि इस हदीस की चंद अस्नाद बयान करने और जरह-ओ-तादील के बाद फ़रमाते हैं : मज़कूरा हदीस हुस्न का दर्जा रखती है। जिन अहादीस में ज़ियारत-ए-क़ब्र-ए-अनवर की तरग़ीब दी गई है उन की तादाद दस से भी ज़्यादा है, इन अहादीस से मज़कूरा हदीस को तक़वियत मिलती है और उसे हुस्न से सही का दर्जा मिल जाता है। सबकी, शिफ़ा-ए-अलसक़ाम फ़ी ज़यारऩ ख़ैर अलणनाम : 3, 11

हज़रत अबदुल्लाह बिन उम्र रज़ी अल्लाह अन्हुमा रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सुरूर-ए-कौनैन सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम का फरमान-ए-अक़्दस है जिस ने हज किया फिर मेरी वफ़ात के बाद मेरी क़ब्र की ज़यारत की तो गोया इस ने मेरी ज़िंदगी में मेरी ज़यारत की। दार क़ुतनी, अलसनन, 2 : 278 , तबरानी, अलमाजम अल-कबीर, 12 : 310, रक़म : 13497 , तबरानी, अलमाजम अलणोसत, 4 : 223, रक़म : 3400